
आत्मनिर्भर भारत ही पुनः भारत को विश्वगुरु के सिंहासन पर विराजमान करेगा
आत्मनिर्भर भारत आपदा में अवसर को ढूँढने और कोरोना काल के बाद के समय में भारत को विश्व पटल पर एक नई पहचान दिलाने का नाम है, जिसका आहवाहन देश के यशस्वी प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिल्कुल सही कहा है कि केंद्र सरकार का ‘आत्मनिर्भर भारत’ का संकल्प आत्मकेंद्रित नहीं है, बल्कि भारत को सक्षम बनाने और वैश्विक शांति तथा अर्थव्यवस्था को अधिक स्थिर करने में मदद करने के लिए है. आत्मनिर्भर भारत केवल एक योजना नहीं है, बल्कि एक पूरा दर्शन है, जिसके केंद्र में अंत्योदय है, यानि पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक का उत्थान। यह विचारधारा टैगोर से लेकर महात्मा गांधी तक और आचार्य विनोबा भावे से लेकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी तक, सभी महान विभूतियों द्वारा अपने जीवन और आचरण में उतारी गई है।
आत्मनिर्भर भारत को लेकर कई तरह की भांतिया भी फैली हुई हैं, जैसे कि यह अभियान भारत को भूमंडलीकरण की प्रक्रिया से दूर करने वाला है, इस अभियान से भारत एक ‘इन्वर्ड लूकिंग यानि एक बंद अर्थव्यवस्था बन जाएगा आदि। ऐसी भांतियों और बेबुनियाद आलोचनाओं का मैं एक सिरे से खंडन करना चाहता हूँ।
आत्मनिर्भरता भारत और भूमंडलीकृत भारत एक दूसरे के विरोधाभासी नहीं बल्कि एक दूसरे के तर्कसंगित पूरक हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी जब आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं तो वह एक ऐसा भारत बनाने की परिकल्पना करते हैं, जो ग्लोबल वैल्यू चेन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो। जहां सुई से लेकर सुखोई तक और स्टेम सेल से लेकर सोलर पैनल तक निर्मित हो जिसकी इतनी गुणवक्ता हो कि जिसकी मांग भारत समेत पूरे विश्व में हो जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कहा है कि आत्मनिर्भरता के भवन का निर्माण करने के लिए पांच स्तंभों अर्थव्यवस्था, इंफ्रास्ट्रक्चर, सिस्टम, डेमोग्राफी और डिमांड की जरूरत होगी।
इतनी विवधताओं और प्रतिभाओं वाले देश के पास कमी बस उचित प्लेटफॉर्म और प्रोत्साहन की है जो आज मोदी सरकार की विभिन्न योजनाओं जैसे की स्टार्टउप इंडिया, स्किल इंडिया और हालिया कृषि विधेयकों द्वारा प्रदान किया जा रहा है। आत्मनिर्भर भारत उसी दिशा में एक बड़ी पहल है।
हम फोर्थ जनरेशन इन्डस्ट्रीअल रेवलूशन के दौर में जी रहे हैं जहां automation, artificial इन्टेलिजन्स और robotics ही दुनिया की सैन्य और आर्थिक शक्ति को दशा और दिशा देंगे। ऐसे में हम इन चीजों के लिए किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं रह सकते। आत्मनिर्भर भारत के माध्यम से हम इन्ही चीजों के लिए ecosystem बना रहे हैं जिसपर हमारे युवा अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित कर सकें।
MSMEs को सस्ती दरों में कर्ज, इन्साल्वन्सी कानून, श्रम कानूनों को और सरल बनाना आदि कुछ ऐसे कदम हैं जिसे उद्योगों बढ़ावा मिल सके और भारत विश्व भर को अपने समान प्रदान करे। हम economy और ecology के बीच भी संतुलन बनाने में विश्वास रखते हैं और इसिलिए हमारा ध्यान सोलर एनर्जी और जंगलों का विस्तार करने में भी बराबर से है।
रक्षा के क्षेत्र में हमने नेगटिव इम्पोर्ट लिस्ट बनाई है जिससे हमारे देश के उद्यमियों को ही अवसर मिले के वो सेना को नए हथियार और तकनीक प्रदान कर सकें ताकि सेना की निर्भरता दूसरे देशों पर कम हो सके।
आत्मनिर्भर भारत के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं है।
आत्मनिर्भर भारत की समस्या “3 एम’ की है – माइंडसेट, मार्केटिंग और मैनेजमेंट।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने क्या खूब कहा है कि- जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। यानि हम चीजों को जिस मानसिकता के साथ देखते हैं, चीजें और दुनिया हमें वैसी ही नज़र आती है। यही माइन्ड्सेट आत्मनिर्भर भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। हमने यह मान कर रख लिया है कि भारत में निर्मित वस्तु या भारतीय कंपनी द्वारा बनाया हुआ समान विदेशी कंपनियों के समान से कमतर है। ‘इंपोर्टेड’ एक स्टेटस सिंबल है। हमको इस औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर आना पड़ेगा और अपने देश में बनाए हुए सामानों को आर्थिक के साथ साथ मानसिक रूप से भी समर्थन देना होगा।
दूसरी समस्या है मार्केटिंग की। एक उदाहरण से इसे समझते हैं। रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात की 68वीं कड़ी में प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्व खिलौना उद्योग सात लाख करोड़ रुपये से भी अधिक का है लेकिन इसमें भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है. भारत में खिलौने बनाने की परम्परा हजारों साल पुरानी और विविध है। सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों में भी हमें खिलौने मिले हैं। लेकिन आज इसका पूरा बाजार हमारे पड़ोसी देश ने पूरी तरह कब्जिया रखा है खिलौने तो आज भी देश में अलग-अलग तरह के बन रहे है हैं, फिर चाहे वो बिहार में हो या मणिपुर में, लेकिन उनका किसी ग्लोबल value चेन से कोई संबंध नहीं है जो उनको वैश्विक बाजार के समक्ष प्रस्तुत कर सके। हमे अपने घरेलू उत्पादों की इन्हीं जीवीसी (gvc) से जोड़ना होगा ताकि हमारा समान हर जगह बिके। बोस्टन में भी जब भागलपुर का बना मेड इन इंडिया ब्रांड का जूता बिकेगा तब हम मानेंगे के भारत आत्मनिर्भरता की राह में बहुत आगे निकल गया है।
तीसरी और सबसे बड़ी चुनौती जो आत्मनिर्भर भारत के सामने है वो है management यानि प्रबंधन की। मेरी अक्सर युवा साथियों, व्यापारियों और उद्यमियों से जब बात होती है तो वो शिकायत करते हैं कि वो करना तो बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन नौकरशाही और उसमें निहित लाल फीताशाही उनके कुछ करने नहीं देती। सरकारी तंत्र के एक बड़े हिस्से में निहित ये poor management और पूंजीवादी/उद्योग वादी विरोधी मानसिकता हर चीज़ में लापरवाह और लेट लतीफी करती है जिससे बड़े बड़े अवसर हॉथ से निकाल जाते हैं। इसी दिशा में मानीनिय मोदी जी द्वारा मिशन कर्मयोगी को लागू करना एक सराहनीय प्रयास है जो हमारी नौकरशाही को ऐसा प्रशिक्षण देगा जिससे वो और अधिक पीपल फ्रेंडली और बिजनस फ्रेंडली बन सके।