
छठ महापर्व: एक समर्पण, आस्था और एकता का प्रतीक
छठ महापर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति में गहरी आस्था, संकल्प और पवित्रता का प्रतीक है। छठ पूजा में ऐसी एकता और समर्पण की भावना निहित है कि हर वर्ग, हर समुदाय इसे बिना किसी भेदभाव के पूरी श्रद्धा से मनाता है। इस पर्व में न कोई ऊँच-नीच है, न कोई जाति-पाति। यह महापर्व समाज के हर व्यक्ति को, चाहे वह किसी भी वर्ग से आता हो, एक समान अवसर देता है कि वह सूर्य और छठी मैया की पूजा कर अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की कामना करे। छठ पूजा में छठ घाट पर कोई भी प्रसाद मांगने वाले से जाति का विवरण नहीं पूछता है अपितु बेझिझक प्रसाद का आदान-प्रदान किया जाता है।
छठ महापूजा की सबसे अद्भुत बात यह है कि इसमें कोई विशेष पंडित या बाहरी आयोजन की आवश्यकता नहीं होती। साधारण से साधारण व्यक्ति भी नदी के किनारे या अपने घर के आँगन में इस पूजा को पूरी श्रद्धा और पवित्रता के साथ कर सकता है। यह पूजा चार दिनों का कठिन व्रत है, जिसमें आस्था और संकल्प का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
शारदा सिन्हा की आवाज़ और छठ महापर्व का अनमोल संगम
छठ के अवसर पर जो अद्वितीय वातावरण होता है, वह शारदा सिन्हा जी के गीतों के बिना अधूरा है। शारदा सिन्हा की आवाज़ ने छठ पूजा को सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में पहचान दिलाई है। उनके गाए हुए छठ के गीतों में आस्था और ममता का ऐसा भाव झलकता है कि हर सुनने वाला अपने आप को छठ की पावन परंपरा का हिस्सा महसूस करता है। चाहे वह “केलवा के पात पर” हो या “पहिले पहिल हम” जैसे गीत, शारदा सिन्हा की आवाज़ ने छठ महापर्व को घर-घर पहुँचाया है।
उनके गीतों में ग्रामीण लोकजीवन की झलक और छठ पर्व के प्रति श्रद्धा की गहराई सुनने वालों को भावविभोर कर देती है। इस पर्व के गीतों के माध्यम से वे न केवल एक परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं, बल्कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक छठ की गूंज को अनवरत जारी रख रही हैं। आज जब शारदा सिन्हा जी स्वास्थ्य संकट से जूझ रही हैं, तो उनके गीतों की मिठास और उनके योगदान को याद करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
छठ पूजा: आध्यात्मिकता और सामाजिक एकता का संदेश
छठ महापर्व हमें यह सिखाता है कि भक्ति का मार्ग हर व्यक्ति के लिए समान है। इसमें न कोई विशेष आचार संहिता है, न कोई दिखावा, केवल एक सच्चा संकल्प और श्रद्धा से युक्त मन की आवश्यकता होती है। छठ पूजा में सामूहिकता और एकता का अद्भुत प्रदर्शन होता है, जहाँ समाज का हर वर्ग मिलकर एक ही आस्था के साथ सूर्य देव और छठी मैया की उपासना करता है। इस पर्व के दौरान हर घाट और हर घर एक मंदिर बन जाता है, जहाँ एक जैसी प्रार्थना की जाती है।
इस महाव्रत की खूबसूरती इस बात में भी है कि इसमें किसी प्रकार की दिखावे वाली पूजा-अर्चना की आवश्यकता नहीं होती। लोग अपने सादगीपूर्ण भक्ति से छठी मैया के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। इसके माध्यम से यह पर्व न केवल आध्यात्मिक रूप से बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी हमें एकता और समानता का संदेश देता है।
इस छठ पर्व पर हम सबकी यही कामना है कि छठी मैया और सूर्य देव सभी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लेकर आएं और शारदा सिन्हा जी को स्वस्थ कर हमें फिर से अपनी मधुर आवाज़ का आशीर्वाद दें, ताकि आने वाले छठ पर्वों में उनकी गूंज फिर से हमारे दिलों तक पहुँचे।
छठ पूजा न केवल आस्था और श्रद्धा का पर्व है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति सम्मान और सामुदायिक एकता का अद्भुत उदाहरण है। यह पर्व सूर्य देवता और छठी मैया की उपासना का प्रतीक है, जो हमें सिखाता है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य कैसे बनाए रखा जाए। जल, सूर्य और धरती का संतुलन इस महापूजा के केंद्र में होता है, जहाँ प्रकृति के इन तीन तत्वों की पूजा की जाती है। छठ पूजा में जिस पवित्रता और सादगी के साथ व्रत, अर्घ्य और प्रसाद की परंपरा निभाई जाती है, वह जीवन में संतुलन और संयम का संदेश देती है।
इस महापर्व का एक और विशेष पहलू है—यह पूरी तरह से भेदभाव रहित है। छठ पूजा में समाज के हर वर्ग के लोग, चाहे वे किसी भी जाति, धर्म, या वर्ग से हों, मिल-जुलकर इसे मनाते हैं। इस पूजा में न कोई ऊंच-नीच का भेदभाव होता है और न ही किसी प्रकार की विशेष आचार-संहिता। हर कोई अपने स्तर पर, अपनी क्षमता के अनुसार इस पूजा में शामिल होता है। यही छठ पूजा का सौंदर्य है कि यह पर्व एकता का प्रतीक बनकर सभी को जोड़ता है।
प्रसाद में सुथनी का विशेष महत्व
छठ पूजा के प्रसाद में सुथनी का विशेष महत्व है। सुथनी एक प्रकार की जड़ वाली सब्जी है, जो पारंपरिक रूप से छठ पूजा में प्रसाद के रूप में अर्पित की जाती है। इसे पूजा में शामिल करने के पीछे गहरा प्रतीकात्मक अर्थ है। सुथनी धरती की उपज है, और इसका प्रसाद के रूप में प्रयोग प्रकृति से हमारे संबंध को दर्शाता है। जिस तरह सुथनी मिट्टी में पनपती है, उसी तरह छठ पर्व हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखने का काम करता है।
सुथनी, नारियल, ठेकुआ, कसार जैसे प्रसाद केवल खाने की वस्तुएँ नहीं हैं, बल्कि छठ पूजा की पवित्रता, सादगी और आत्मनिर्भरता का प्रतीक हैं। इन पारंपरिक प्रसादों को विशेष रूप से घर पर ही तैयार किया जाता है, जो इस पर्व की महत्ता को और भी बढ़ाता है। प्रसाद में सुथनी जैसे फल और सब्जियों का प्रयोग यह भी सिखाता है कि हम अपने भोजन में प्रकृति के उपहारों का आदर करें और सादगी को अपनाएँ।
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