मनोज कुमार जी: वो हीरो जो परदे पर नहीं, भारत में बसते थे

उनका नाम सुनते ही मेरे बचपन की एक तस्वीर सामने आ जाती है-
रविवार की सुबह, रंगोली में गाने आ रहे हैं, वो एक्टर नहीं, वो भारत की आवाज़ है।

वो दौर अलग था। जब “भारत का रहने वाला हूँ” गाना बजता था, तो TV के सामने बैठा बच्चा भी सीना चौड़ा कर लेता था- सिर्फ़ इसलिए नहीं कि गाना अच्छा था, बल्कि इसलिए कि उसे परदे पर एक ऐसा चेहरा दिखता था जो सच लग रहा था।

मनोज कुमार जी की फिल्मों में देशभक्ति बनावटी नहीं लगती थी।
वो किसी स्क्रिप्ट का हिस्सा नहीं लगती थी – वो जैसे उनके खून में थी।
उपकार, पूरब और पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान – ये सिर्फ़ फिल्में नहीं थीं, ये उस समय के हर आम हिंदुस्तानी की कहानी थीं।

वो किसी सुपरस्टार की तरह शोर नहीं करते थे,
लेकिन हर डायलॉग, हर गाना सीधे दिल तक पहुंचता था।

जब उन्होंने कहा था –
“हर हाथ को काम दो, हर खेत को पानी…”
तो लगा जैसे सिनेमा नहीं, सच बोल रहा है।

जहाँ परदे -टीवी पर सिर्फ़ एक्टिंग नहीं होती थी, बल्कि आत्मा दिखती थी।

प्यार का नगमा है… चलती है ज़िंदगी”
ये सिर्फ़ एक गाना नहीं था, ये मनोज कुमार जी की सोच थी।

फ़िल्म ‘शोर’ में जब ये गाना आता है, तो पर्दे पर सिर्फ़ सुर नहीं बजते,
एक आदमी की तकलीफ, उसका सपना, और उसकी उम्मीदें भी गूंजती हैं।
मनोज कुमार जब उस गाने में खड़े होते हैं – वो बस एक्टिंग नहीं कर रहे होते,
वो जैसे अपने दिल की बातें गा रहे होते हैं।

“प्यार का नगमा है…” उनकी फिल्मों की आत्मा थी।
हर फिल्म में प्यार था – देश से, ज़मीन से, इंसानियत से।
उनके चेहरे पर जो सच्चाई दिखती थी,
उसी ने हमें उनसे जोड़ा… और जोड़े रखा।

मनोज कुमार जी ने सिनेमा को सिर्फ़ कहानियाँ नहीं दीं,
उन्होंने उस दौर के आम इंसान की लड़ाई, इज़्ज़त और उम्मीदें परदे पर जिंदा कर दीं।
मेरी तरफ़ से मनोज कुमार (भरत कुमार) जी को विनम्र श्रद्धांजलि।