
वक्त है क्रिकेट में कुछ कुछ बड़ा ‘खेल’ करने का!
अभी हाल ही में जिस तरह से पुरुषों की भारतीय क्रिकेट टीम का ऑस्ट्रेलिया में टी २० विश्व कप २०२२ प्रदर्शन रहा, निश्चित तौर पर उसने मेरे जैसे सभी क्रिकेट प्रमियों को अत्यंत निराश और हतोत्साहित कर दिया है. भारतीय टीम से इतनी तो आशा थी की एक से एक दिग्गज खिलाडियों से भरी हुई टीम कम से कम विश्व कप के फाइनल में तो पंहुचेगी ही. लेकिन इसके विपरीत भारतीय टीम का प्रदर्शन किसी भी मैच संतोषजनक तक नहीं रहा,मतलब कागज पर ही दिग्गज टीम थी।पूरी टीम हर मोर्चे पर लगभग संघर्ष करती हुई नज़र आई और इससे अधिक निराशा की क्या बात होगी की टीम को फाइनल में पंहुचने के लिए ११ खिलाड़ीयों में मात्र तीन-चार खिलाड़ीयों के कारण ही सेमीफाइनल तक पहुँच पाए. हम सोशल मीडिया पर इस बार की कितनी भी ख़ुशी मना लें या कितना भी ट्रोलिंग कर लें की विश्व कप के फाइनल मुकाबले में पाकिस्तान को इंग्लैंड ने हरा कर वर्ल्ड कप जीत लिया लेकिन हम इस तथ्य से मुंह नहीं मोड़ सकते की हम खुद तो फाइनल तक भी पंहुच नहीं पाए. क्योंकि हमारी ओपनिंग बुरी तरह से फ्लॉप,गेंदबाज़ी एकदम औसत दर्ज़े से भी कम.भारतीय टीम के इस ख़राब प्रदर्शन के बाद कई वाजिब सवाल खेल प्रेमियों एवं खेल के जानकारों के द्वारा अब उठाए जा रहे हैं और मेरे हिसाब से उठाए भी जाने चाहिए. क्यूँ नहीं उठाई जानी चाहिए १ अरब ४० करोड़ के देश में १५० की रफ़्तार से गेंदबाज़ी करने वाला कोई गेंदबाज़ नहीं या टैलेंट हंट किया नहीं जाता. जबकि सुविधा देने के मामले में क्रिकेट सबसे ऊपर है।
जिस देश में क्रिकेट को एक धर्म की संज्ञा दी जाती है और जहाँ क्रिकेट खिलाडियों को भगवान की तरह पूजा जाता है अगर उस देश के खिलाड़ी लगातार ख़राब खेल का प्रदर्शन करेंगे,या फिर अधिकतर समय अपनी फिटनेस को लेकर परेशान रहेंगे तो क्या यह सन्देश नहीं जाएगा की टीम में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. ऐसा क्यों है की जो खिलाड़ी फिट नही और और अच्छा नहीं खेल रहे वो सब आईपीएल में एकदम भले चंगे और शानदार प्रदर्शन करने वाले बन जाते हैं? वो देश से जायदा अपने फ्रेंचाइजी मालिकों के लिए जायदा उपलब्ध रहते है। जब वर्ल्ड कप था तो बूमराह को नहीं चाहिए था की वो आईपीएल से ब्रेक लेकर वर्ल्ड कप के लिए फिट रहता लेकिन क्या हुआ हम सब जानते है,क्या उनके लिए अपने देश का प्रतिनिधित्व करती हुई टीम में खेलना एक पूर्णतः व्यावसायिक उद्देश्य से आयोजित किये जाने वाली लीग के लिए खेलने से कम महत्वपूर्ण है? आईपीएल को दोष क्यूँ ना दिया जाए भारत ने धोनी के नेतृत्व में २००७ में टी-२० का वर्ल्ड कप जीता था,उसके बाद २००८ से आईपीएल शुरू हुआ क्या हुआ उसके बाद हम लोग ने एक भी वर्ल्ड कप नहीं जीत पाए,क्योंकि हमारी प्राथमिकता कुछ और हो गई ।
मैं उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता हूँ जिसने अपने बचपन में छोटे शहरों में रहते हुए कई बार रेडियो में तो कई बार पूरे मोहल्ले के एकलौते कलर टीवी, केबल और इन्वर्टर का कनेक्शन रखने वाले घर में जा कर घंटों मैच का न आनंद लिया है , बल्कि कई मैच को जिया तक है. हमने क्रिकेट को अपनी रगों में बहते हुए देखा है. हमने गांगुली, सचिन, द्रविड़, कुंबले और लक्षमण जैसे खिलाडियों को कहलते हुआ अपने बचपन से लेकर जवानी की यात्रा पूरी की है. ऐसे खिलाडियों को हम महज़ इस लिए नहीं पूजते और और सम्मान करते थे क्योंकि इनका प्रदर्शन बहुत अच्छा होता था. हमारे बड़े और अभिभावक भी हमको इनके आचरण, इनके व्यव्हार, इनकी गंभीरता और इनके परिश्रम की वजह से हमको इनके जैसा बनने के लिए प्रेरित किया करते थे. क्या आज के खिलाडियों के लिए ऐसा कह पाना संभव है? मुझे इस बात पर गंभीर संशय है.उसके बाद धोनी का कूल एप्रोच देखा है जिसके नेतृत्व में भारत ने तीन आईसीसी ट्रॉफी जीती। मै कोई क्रिकेट एक्सपर्ट नहीं बस एक क्रिकेट प्रेमी हूँ जो अपनी टीम को हारते देख दुःखी होता हूँ,जब भी हारों एक ही बात कही जाती है क्रिकेट है हार-जीत लगी रहती है,लेकिन हर बात नॉक आउट मुक़ाबले में हारना तक ठीक है लेकिन बुरी तरीक़े से हारना कहाँ तक जायज़ है,एक आगे से आकर हथियार डाल देना । फाइनल में पाकिस्तान की भी हार हुई लेकिन वो लड़ें अंतिम गेंद तक लड़ें। उस स्थिति में कहा जाएगा हार-जात खेल का हिस्सा है। पिछली साल वर्ल्ड कप में ऐसे ही पाकिस्तान के हाथों करारी शिकस्त वो अभीतक क्रिकेट प्रेमी भूलें नहीं थे की अब इंग्लैंड के हाथों भारी करारी शिकस्त । आख़िर क्यूँ? कुछ क्रिकेटर ऐसे है जो कमजोर टीम के आगे मानों विवियन रिचर्ड्स-तेंदुलकर बन जाते है जी हाँ! मैं केएल राहुल के बारे में बोल रहा हूँ कब उस बंदे ने कोई बड़ा मैच भारत को जिताया है? मुझे तो याद नहीं ! और सबसे दिलचस्प बात अगर आप किसी खिलाड़ी कि आलोचना करो तो उनकी PR टीम अलग-अलग हैंडल से फैन बनकर आपको गाली देना शुरू कर देंगे ये एक नई चीज़ शुरू हुई है,हर खिलाड़ी कोई न कोई PR एजेंसी रखें हुए है जो आलोचना होने पर उनकी साइबर आर्मी आपको गाली-गलौज करेगी। जब २००७ का वर्ल्ड कप था तो उस समय के सीनियर खिलाड़ी तेंदुलकर-द्रविड़-लक्ष्मण-गांगुली ने ख़ुद को अलग कर लिया था और नई ऊर्जा वाले खिलाड़ियों को मौक़ा दिया गया था उसका नतीजा क्या हुआ था हम सब जानते है। हमने जीता और डंके के चोट पर जीता । क्या उस स्थिति में रोहित-अश्विन-कार्तिक-भुवी-शम्मी को भी अलग हो जाना चाहिए था और नई ऊर्जा वाले बच्चों को मौक़ा देना चाहिए था,लेकिन भारत में खिलाड़ी निर्णय लेते है वो खेलेंगे बल्कि ये निर्णय बीसीसीआई और उनकी सेलेक्शन टीम को लेनी चाहिए । देश के वो खिलाड़ी जो अन्य खेलों के माध्यम से देश का प्रतिनिधित्व करते हैं, अक्सर यह शिकायत करते हैं की उनको उस तरह का सम्मान, प्रेम, धन, समर्थन और यहाँ तक की प्रोत्साहन तक नहीं मिलता जो क्रिकेट खिलाडियों को इस देश की जनता एवं सरकार द्वारा दिया जात है. लेकीन फिर भी वो लोग सीमित संसाधनों के बावजूद अपने स्तर पर देश का नाम रौशन करने का पूरा प्रयास कर रहे हैं. क्या भारतीय क्रिकेट टीम ‘अत्यधिक संसाधनों के श्राप’ जिसे हम रिसोर्स कर्स भी कहते हैं, उससे जूझ रही है? इसके बारे में क्रिकेट बोर्ड को जल्द ही सोचना पड़ेगा.
कठोर निर्णय लेने का समय आ गया है,क्योंकि किसी खिलाड़ी से ऊपर देश का आन-बान-शान है। हमें प्रोफेशनल अप्रोच दिखाना होगा। क्वालिटी और क्वांटिटी में फ़र्क़ करना होगा।
अँधेरे में रौशनी की कुछ किरणें
हालाँकि इन सब आलोचनों के बीच कुछ अच्छी खबरें भी है. इनमे से सबसे ऊपर है विराट कोहली का अपनी वास्तविक क्षमताओं को प्राप्त करना और एक महान खिलाड़ी की तरह गंभीर संकट और असहनीय दबाव के समय में भी अपनी एकाग्रता को बरक़रार रखते हुए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना, जो की उन्होंने 53 गेंदों में ८२ रन की नाबाद पारी खेल कर के सबके सामने प्रस्तुत किया. ज्ञात रही की इस विश्व कप में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाजों में भारत के विराट कोहली टॉप पर रहे। उन्होंने छह मैचों में 98.66 की औसत और 136.40 के स्ट्राइक रेट से 296 रन बनाए। इसमें चार अर्धशतक शामिल है। वहीँ दूसरी ओर सूर्यकुमार यादव के रूप में भारत को एक शानदार खिलाड़ी मिल गया है जिससे आने वाले समय में भारत को बहुत अपेक्षाएं रहने वाली हैं. लेकिन भारतीय क्रिकेट बोर्ड को भी यह ध्यान देना पड़ेगा की सूर्य कुमार जैसे कुछ अन्य सूर्य भी भारतीय टीम में शामिल किये जाएं ताकि इस लगातार मिल रही हार रूप अंधकार से छुटकारा पाया जा सके. अभी बोर्ड के पास समय है की वो आपने वाले बड़े मुकाबलों के पहले टीम में आमूलचूल परिवर्तन कर के उसे ‘विजयी भव” का आशीर्वाद दे! अपनी इच्छा तो यही है हर जगह तिरंगा सबसे ऊपर हो।
Rajesh Ranjan
Excellent analysis